जालौन:- जैसे कि वर्तमान समय में पत्रकारिता को एक लोकतंन्त्र का चौथा स्तम्भ माना जाता है । पत्रकारिता के सहारे समाज के कई गरीब, दबे , कुचले ,निर्बल बेसहारा लोगों को न्याय मिल चुका है ,यह एक आम बात है ।लेकिन वर्तमान में जिस तरह से पत्रकारिता का स्तर दिनों दिन बहुत ही नीचे गिरता चला आ रहा है, इसका मुख्य कारण क्या है ? क्या कभी किसी ने सोचा है कि पत्रकारों से पुलिस वर्तमान समय में क्यों इतनी अधिक नफरत करने लगी है। यदि गहराई से इस पर चिंन्तन किया जाए तो यहां पर एक तथ्य यह भी उभरकर के सामने आता है कि पत्रकारों की जो आपसी फूट है उसका भरपूर फायदा पुलिस प्रशासन उठाता है ।आजकल पत्रकारों के कई ग्रुप बने हुए हैं कि यदि किसी एक ग्रुप ने किसी पुलिस प्रशासन के खिलाफ कोई खबर लिख दी तो दूसरा ग्रुप उस पुलिस प्रशासन या उस पुलिस अधिकारी के पक्ष में खड़ा हो जाता है । यही कारण है कि पत्रकारों को पुलिस आज के समय में दलाल की दृष्टि से ,हीनभावना की दृष्टि से देखने लगी है । जनपद जालौन के एक वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं कि वह नब्बे के दशक से पत्रकारिता कर रहे हैं । उस समय बीहड़ क्षेत्र में कई दस्यु दलों का आतंक होता था और दस्यु दलों के खिलाफ भी समाचार लिखना पड़ता था ।तब पत्रकारिता एक बहुत ही कठिन काम था । उस समय आज के युग जैसे ना तो कोई आने-जाने के अधिक साधन थे ।ना ही हर जगह जाने के लिए अच्छी सड़कें थीं ।और ना ही कोई दूरसंचार के साधन मोबाइल ,टेलीफोन इत्यादि थे ।लेकिन उस कठिन समय में भी उन्होंने पत्रकारिता की है और दस्यु दलों के गैंगों के खिलाफ भी जमकर के समाचार लिखा है । उन्होंने पत्रकारों का वह दौर देखा है कि जब वह साइकिल से चलकर पत्रकारिता करते थे ।और बीहड़ क्षेत्र के ग्रामों में बैठकर के समाचारों का संकलन करके साइकिल से उरई जाते थे और फिर साइकिल से ही उरई से वापस आते थे ।वह बताते हैं कि वह एक दौर था कि जब भले ही पत्रकारों के अधिक संगठन नहीं थे, पत्रकारों की अधिक यूनियन नहीं थीं ।लेकिन जब भी वह स्वयं या अन्य कोई भी पत्रकार जिला स्तर के किसी ऊंचे से ऊंचे अधिकारी अथवा जिलाधिकारी अथवा पुलिस अधीक्षक से मिलने जाते थे तो पत्रकार उनकी चाय तक नहीं पीते थे ।क्योंकि वह सभी पत्रकार जानते थे कि अगर आज शाम तक इन वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ कोई खबर मिल गई तो हमें इनके खिलाफ समाचार लिखना ही पड़ेगा । इसलिए वह उनकी चाय तक नहीं पीते थे ।हां इतना जरूर था कि प्यास लगने पर पत्रकार पानी जरूर अपने मुंह से मांग लिया करते थे । उस समय अगर किसी भी पत्रकार ने चाहे वह पत्रकार कितना ही छोटा क्यों ना हो ,कितने ही छोटे से छोटे समाचार पत्र का संवाददाता क्यों ना हो ,यदि किसी पत्रकार ने किसी पुलिस प्रशासन के अधिकारी अथवा किसी भी विभाग के ऊंचे से ऊंचे जिला प्रशासन के अधिकारी के खिलाफ कोई समाचार लिख दिया तो बड़े से बड़े बैनर वाले कोई भी पत्रकार उस खबर का खंण्डन नहीं करते थे और ना ही उस पत्रकार के खिलाफ जाते थे ।केवल उस पत्रकार का ही साथ देते थे । इसीलिए उस समय में पत्रकारों के खिलाफ कोई भी मुकदमा लिखने में पुलिस प्रशासन भी हिम्मत नहीं जुटा पाता था ।लेकिन आज के समय को देखते हुए वह वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं कि अब पत्रकारिता का समय बिल्कुल विपरीत हो चुका है ।पत्रकारों की आपसी फूट का पुलिस प्रशासन भरपूर फायदा उठाता है ।इसी कारण से आजकल कई पत्रकारों पर पुलिस बेवजह मुकदमे लगा रही है और निर्दोष पत्रकारों को जेल में ठूंसा जा रहा है ।दूसरा कारण यह है कि आज के समय में कई दलाल किस्म के पत्रकार ऐसे हो गए हैं जो सिर्फ एक कप चाय और एक गिलास ठंडा ,पेप्सी कोका कोला पर बिकने वाले हो गए हैं ।उदाहरण के लिए यदि किसी एक पत्रकार ने किसी थाने के पुलिस इंस्पेक्टर के खिलाफ कोई समाचार छाप दिया तो अगले दिन तुरन्त ही उस इंस्पेक्टर की चापलूसी करने वाले पत्रकार उस थानेदार की अपने समाचार पत्र में बड़ाई छाप देते हैं और जिस पत्रकार ने सच लिखा है ,वह पत्रकार उस थानेदार का टारगेट बन जाता है और कहीं से भी कोई जरा सी भी झूठी शिकायत मिलने पर वह तिलमिलाया थानेदार उस पत्रकार के खिलाफ तुरंन्त ही बढ़ा-चढ़ा करके गंम्भीर धाराओं में मुकदमा लिख देता है ।लेकिन जिस पत्रकार ने थानेदार की अपने समाचार पत्र में बड़ाई छापी है, वह पत्रकार यह भूल जाता है कि आज यह इंस्पेक्टर उस पत्रकार को जेल भेज रहा है तो कल कोई दूसरा थानेदार मुझको भी झूठे मुकदमे में फंसा करके जेल भेजेगा ।क्योंकि अगर कहीं मैंने भी किसी इंस्पेक्टर के खिलाफ सच में समाचार लिख दिया तो मेरे खिलाफ भी कोई दूसरा पत्रकार उस पुलिस इंस्पेक्टर के पक्ष में खड़ा हो जायेगा ।सबसे बड़ा कारण यही है कि आज पत्रकारिता का स्तर दिनों दिन गिरता चला जा रहा है । सिर्फ एक कप चाय और एक गिलास ठंडा की बदौलत बिकने वाले पत्रकारों ने ही सारा माहौल खराब कर दिया है और पत्रकारिता को बदनाम कर दिया है ।जो पत्रकारिता लोकतंन्त्र का चौथा स्तम्भ कही जाती है ,आज वह चौथा स्तम्भ ना हो करके दलाल पत्रकारों की बदौलत केवल प्रशासन और पुलिस प्रशासन की कठपुतली बन करके रह गया है ।हम सभी पत्रकार भाइयों को इस पर एक बहुत ही आत्म चिन्तन करने की जरूरत है।
पुलिस क्यों करती है पत्रकारों से नफरत एक सोचनीय विषय जानिए क्या हैं पूरा खबर
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सुनील प्रजापति ऐंधा
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