अम्बरीष शर्मा राज्य ब्यूरो उत्तर प्रदेश एम आर जे न्यूज महराजगंज
वाराणसी। कोडिन युक्त कफ सिरप की अवैध बिक्री के मामले में दवा कारोबारियों की गिरफ्तारी के बाद अब सहायुक आयुक्तों और ड्रग इंस्पेक्टरों पर शिकंजा कसने की तैयारी शुरू हो गई है। विवेचना में कई फर्मों के फर्जी निकलने पर इनकी भूमिका संदेह के घेरे में आई है। लाइसेंस जारी करने से पहले नियमानुसार समस्त दस्तावेज और पता का भौतिक सत्यापन करना होता है, जो नहीं हुआ। मोटी रकम लेकर लाइसेंस देने में जमकर बंदरबाट हुई इसी के कारण आज पूरे देश में चर्चा ए आम बनी हुई हैं और लाइसेंस जारी करने वालों पर कई तरह के सवालिया ऊँगली उठने लगी हैं जो लाजिमी भी हैं। कोडिनयुक्त कफ सिरप की अवैध खरीद-बिक्री के मामले में बीते छह वर्षों में थोक दवा लाइसेंस जारी करने वाले खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग के सहायक आयुक्तों और ड्रग इंस्पेक्टरों की भूमिका संदेह के घेरे में है। कई फर्मों के सिर्फ कागजों पर संचालित होने के खुलासे के बाद विभाग के उच्चाधिकारियों ने बीते छह वर्षों में वाराणसी में तैनात दोनों रैंक के अफसरों की जांच शुरू कर दी है। प्रकरण की जांच में अब तक कई ऐसी फर्मों का खुलासा हुआ है, जो केवल कागज पर संचालित हो रही थीं। इसी वजह से इन्हें लाइसेंस जारी करने वाले खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन (एफएसडीए) विभाग के अफसरों की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। विभाग की अतिरिक्त सचिव रेखा एस. चौहान ने बताया कि मामले की जांच पूरी पारदर्शिता के साथ की जा रही है। व्यापारियों के साथ-साथ लाइसेंस जारी करने वाले सहायक आयुक्तों और ड्रग इंस्पेक्टरों की भूमिका भी जांच के दायरे में है। उन्होंने कहा कि किसी भी अधिकारी के दोषी पाए जाने पर तत्काल कार्रवाई की जाएगी। उल्लेखनीय है कि मामले के मास्टरमाइंड शुभम जायसवाल के पिता भोला जायसवाल की रांची स्थित ‘शैली मेसर्स ट्रेडर्स’ ने बनारस की 126 फर्मों को कोडिनयुक्त कफ सिरप की सप्लाई की थी। इन फर्मों की जांच के दौरान कई फर्जी पाई गईं। कहीं लाइसेंस पर दर्ज पते पर मकान मिला, तो कहीं जनरल स्टोर। जबकि नियमों के अनुसार लाइसेंस जारी करने से पहले ड्रग इंस्पेक्टर को मौके का निरीक्षण करना होता है। ऐसे में अलग-अगल समयों पर जारी किए गए लाइसेंस की वजह से सहायक आयुक्तों और ड्रग इंस्पेक्टरों की जिम्मेदारी पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। बनारस में वर्ष 2019 से अब तक एफएसडीए में अलग-अलग अवधि में तीन सहायक आयुक्त और पांच ड्रग इंस्पेक्टर तैनात रहे हैं। इसी अवधि में थोक दवा के 89 लाइसेंस जारी किए गए। वर्ष 2019 से अब तक वाराणसी में तैनात ड्रग इंस्पेक्टर रहें जिनका नाम और उनके द्वारा जारी किया गया लाइसेंस का विवरण देखा जाए तो स्व. सौरभ दुबे ने 14, संजय दत्त ने 10, अमित बंसल ने 23,विवेक सिंह ने 21, जुनाब अली ने 21 (जुनाब अली वर्तमान में तैनात हैं) को लाइसेंस जारी किया हैं। जबकि 2019 से अब तक वाराणसी में तैनात सहायक आयुक्त ने जो लाइसेंस जारी किये उनमे केजी गुप्ता ने 17, नरेश मोहन दीपक ने 29 , पीसी रस्तोगी ने 43 (पीसी रस्तोगी वर्तमान में तैनात हैं) को दिया हैं। जानकारों की माने तो सिर्फ कार्रवाई कर लेने से ही लोगों को न्याय नही मिल सकेगा। कोडिन युक्त सिरप के इस्तेमाल करने से जो आम जीवन के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ा है उसकी भरपाई नहीं हो पाएगी इसलिए जो भी कर्मचारी – अधिकारी कफ सिरप मामले के लाइसेंस जारी करने में दोषी पाया जाता है उसकी चल -अचल संपत्ति की जांच करके भी उसके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करने की सख्त आवश्यकता है ताकि जिन लोगों ने कोडिन युक्त कफ सिरप से अपने परिवार के लोगों का स्वास्थ्य, धन और सम्मान खोया है उसे थोड़ी शांति मिल सके।
Varanasi News: कफ सिरप रैकेट में लाइसेंस जारी करने वाले कई सहायक आयुक्त और ड्रग इंस्पेक्टरों की जांच शुरू
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News Desk
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